Dr. Vashisth

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हमारा बचपन

क्या सुनाए तुम्हे बात बचपन की 
समझ कहां हमको उस वक्त थी
उम्र नादान थी गम से अनजान थी
पहचान रिश्तों से थी बस रक्त की 


एक दिन की कहानी थी कुछ और ही
मैंने ठानी थी हमको है जाना वहीं
घरवाले हमेशा ही रोकते है जहां
कहते हैं वहां पर जाना नहीं



बस ठान लिया तो जाने का था
शौंक मुझको नहर में नहाने का था
दिमाग़ की कोई दलील ना चली 
अरमां पूरा मन का हो जाने का था



मैं पहुंची वहां कोई ना था जहां
आज तो मस्तियां घुल रही शाम में
कैसा सन्नाटा है कोई दिखता नहीं
ऐसा आख़िर हुआ है क्या गांव में


झटके से सारे विचार आ गए 
मेरे मन को लुभाने दोस्त चार आ गए
बोले मेला गांव में आज है लगा 
अपने हाथों में सारे अधिकार आ गए

तैरना हमको आता नहीं है जान लो
चलो बैठ किनारे पर ही नहाएं
चलो डुबकी लगाएं काहे वक्त गवाएं
आज मन की इच्छा को निभाएं


अचानक हुआ वो धमाका यहां
सोचकर आज भी हम कांप जाएं
दोस्त पानी में था चिल्ला रहा
हम सोच रहे थे कि किसको बुलाएं


सांस अटकी हुई नब्ज़ रुकती हुई 
हाल बेहाल था कुछ सूझा नहीं 
कर्म अच्छे थे शायद पुकार रब ने सुनी
एक कारवां आ रहा था वहां


हाल देखा जी उसका उसने सोचा नहीं
डुबकी उसने लगाई पकड़ा उसको वहीं
लेके बाहर भी आया इलाज सुझाया
सोच हमने लिया मनमानी अब करेंगे नहीं।

अंशु की कलम से 

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2 Comments

वाह वाह❤️❤️❤️

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Rajan tiwari

11-Apr-2021 08:20 AM

बचपन की नादानियाँ😁😁😁😁😁

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